Friday, December 31, 2010

Nav Varsh

नव वर्ष  की  नयी  उमंगें
कल के सपने उठी तरंगें
उन सपनों मैं बुनती तानें
आशाओं की वो तस्वीरें

जाता  कल  कुछ खट्टा  मीठा 
कभी बेहुदा  कभी सजीला
छल  औ  कपट के हाथों बिकता
और कभी शोभित  सा दिखता

इस कल की  बस महिमा न्यारी
घोटालों भ्रष्टों से भारी   
चोरों लुटेरे, चंद  उचच्के
नेताओं से लाचार बेचारी

इन चोरों का  ना ईमान
और नहीं कोई पहचान
नरभक्षी से खाल नोचते
पर कहते खुद को इंसान

इनको ना प्रिय देश धर्मं
नहीं पूजते  अपना कर्म 
कर्मों  से नापाक हो रहे 
क्यों ना निष्ठुर ख़ाक हो रहे

किन्तु  नहीं बस कटु अतीत
हमने भी गर्व किया उनपर 
नव विकास की उम्मीदों पर
स्पर्धा पर तकनीकी  पर

नए  वर्ष का शुभ आग़ाज
जन जन विकास गूंजे विचार 
बेमानी ना अत्याचार 
सुखद शांति का हो संचार

नन्हीं आशा का मान बढ़े
प्रेम भाव विश्वास बढ़े
अब  होगा उस भोर रात्रि का 
गर्व करे  दुनिया जिसपर
                                                         विजय उप्रेती

No comments:

Post a Comment