Friday, December 31, 2010

Mitra

मीत  तुम्हें है धन्यवाद

ईश्वर का तुम कोई वरदान
माँ पिता गुरुजन का हो सम्मान
दिव्य ज्योति के तुम प्रकाश
मेरे जीवन मैं  तुम प्रवास

असफलता से जब उदास
निष्फल कर्मों से जब हताश
आकर तुम मुझे उठाते
जीवन जीने की राह दिखाते


मीत अनेकों बने  किन्तु
तुम परिभाषा बन राह दिखाए
भटका जब भी काटों पर चलते 
हाथ प्रेम से  मुक्त कराये 

कहते हें सच्चा मित्र वो ही
जो सच्ची राह दिखाए
सुख मैं गर हो ना साथ कभी
दुःख दर्द मिटाने आ जाये

क्रोध करे गलती करने पर
निश्छल मन फिर गले लगाये   
तुम  अपने  हो  नहीं पराये
निःस्वार्थ भाव से अपनाये 


ऋणी तुम्हारा जीवन भर
सीखा तुमसे जीने का स्वर
प्रभु से  मांगा ये आशीर्वाद
हे मीत  तुम्हें है धन्यवाद
                                                               विजय उप्रेती ( मेरे प्रिय मित्र  के प्रति )

3 comments:

  1. nice one

    "असफलता से जब उदास
    निष्फल कर्मों से जब हताश
    आकर तुम मुझे उठाते
    जीवन जीने की राह दिखाते"
    ... awesome :)

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  2. अर्थपूर्ण कविता के लिए धन्यवाद |

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