मीत तुम्हें है धन्यवाद
ईश्वर का तुम कोई वरदान
माँ पिता गुरुजन का हो सम्मान
दिव्य ज्योति के तुम प्रकाश
मेरे जीवन मैं तुम प्रवास
असफलता से जब उदास
निष्फल कर्मों से जब हताश
आकर तुम मुझे उठाते
जीवन जीने की राह दिखाते
मीत अनेकों बने किन्तु
तुम परिभाषा बन राह दिखाए
भटका जब भी काटों पर चलते
हाथ प्रेम से मुक्त कराये
कहते हें सच्चा मित्र वो ही
जो सच्ची राह दिखाए
सुख मैं गर हो ना साथ कभी
दुःख दर्द मिटाने आ जाये
क्रोध करे गलती करने पर
निश्छल मन फिर गले लगाये
तुम अपने हो नहीं पराये
निःस्वार्थ भाव से अपनाये
ऋणी तुम्हारा जीवन भर
सीखा तुमसे जीने का स्वर
प्रभु से मांगा ये आशीर्वाद
हे मीत तुम्हें है धन्यवाद
विजय उप्रेती ( मेरे प्रिय मित्र के प्रति )
nice one
ReplyDelete"असफलता से जब उदास
निष्फल कर्मों से जब हताश
आकर तुम मुझे उठाते
जीवन जीने की राह दिखाते"
... awesome :)
Dhanyawaad Narendra.
ReplyDeleteअर्थपूर्ण कविता के लिए धन्यवाद |
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