Friday, December 31, 2010

Mitra

मीत  तुम्हें है धन्यवाद

ईश्वर का तुम कोई वरदान
माँ पिता गुरुजन का हो सम्मान
दिव्य ज्योति के तुम प्रकाश
मेरे जीवन मैं  तुम प्रवास

असफलता से जब उदास
निष्फल कर्मों से जब हताश
आकर तुम मुझे उठाते
जीवन जीने की राह दिखाते


मीत अनेकों बने  किन्तु
तुम परिभाषा बन राह दिखाए
भटका जब भी काटों पर चलते 
हाथ प्रेम से  मुक्त कराये 

कहते हें सच्चा मित्र वो ही
जो सच्ची राह दिखाए
सुख मैं गर हो ना साथ कभी
दुःख दर्द मिटाने आ जाये

क्रोध करे गलती करने पर
निश्छल मन फिर गले लगाये   
तुम  अपने  हो  नहीं पराये
निःस्वार्थ भाव से अपनाये 


ऋणी तुम्हारा जीवन भर
सीखा तुमसे जीने का स्वर
प्रभु से  मांगा ये आशीर्वाद
हे मीत  तुम्हें है धन्यवाद
                                                               विजय उप्रेती ( मेरे प्रिय मित्र  के प्रति )

Nav Varsh

नव वर्ष  की  नयी  उमंगें
कल के सपने उठी तरंगें
उन सपनों मैं बुनती तानें
आशाओं की वो तस्वीरें

जाता  कल  कुछ खट्टा  मीठा 
कभी बेहुदा  कभी सजीला
छल  औ  कपट के हाथों बिकता
और कभी शोभित  सा दिखता

इस कल की  बस महिमा न्यारी
घोटालों भ्रष्टों से भारी   
चोरों लुटेरे, चंद  उचच्के
नेताओं से लाचार बेचारी

इन चोरों का  ना ईमान
और नहीं कोई पहचान
नरभक्षी से खाल नोचते
पर कहते खुद को इंसान

इनको ना प्रिय देश धर्मं
नहीं पूजते  अपना कर्म 
कर्मों  से नापाक हो रहे 
क्यों ना निष्ठुर ख़ाक हो रहे

किन्तु  नहीं बस कटु अतीत
हमने भी गर्व किया उनपर 
नव विकास की उम्मीदों पर
स्पर्धा पर तकनीकी  पर

नए  वर्ष का शुभ आग़ाज
जन जन विकास गूंजे विचार 
बेमानी ना अत्याचार 
सुखद शांति का हो संचार

नन्हीं आशा का मान बढ़े
प्रेम भाव विश्वास बढ़े
अब  होगा उस भोर रात्रि का 
गर्व करे  दुनिया जिसपर
                                                         विजय उप्रेती

Tuesday, December 28, 2010

Beeta samay

ये  काल  बीतता जाता

कुछ खट्टे कुछ मीठे पल
कुछ सीधे कुछ उलटे पथ
उन यादों को साथ समेटे
रुकता नहीं चलता जाता
ये काल  बीतता जाता

कल  भी कुछ ऐसा द्रिड था
अब भी यूँ ही कुछ  अडिग  है
कल निष्फल था अब निश्चय है
निश्छल  कर्म अपनाता 
ये काल  बीतता जाता

भटका राह  मैं बार अनेकों
गिरते पड़ते उस पार अनेकों
असफलता के द्वार अनेकों
फिर उठकर राह बनाता
ये काल  बीतता जाता

हाथों की नन्हीं वो लकीर
प्रेरणा प्रदाती नित प्रतिदिन
संकल्प कर्म लिखता भविष्य
असफलता को  गले लगता
ये काल  बीतता जाता

आगे की राह विकट है
सुनसान रात्रि का घट है
इस तेज धार के विरुद्ध बढूँ
प्रभु को शीष नवाता

ये काल बीतता जाता
                                                                                विजय उप्रेती

Kuch Vichar

कल ही मैं अपने मित्रो से रात्रि भोज मैं कुछ वार्तालाप कर रहा था. और विषय था हिंदी भाषा ?
काफी दुःख का विषय है कि हिंदी जिसको राष्ट भाषा का नाम दिया गया वो सिर्फ आज अपने अस्तित्व को खोते जा रही है. राष्ट्र की  एक भाषा राष्ट्र को जोड़ने का काम करती है. किन्तु आज स्वतंत्रता के ६२ वर्ष बाद भी हिंदी भाषा को राष्ट्र  सम्मान नहीं मिल पा रहा है. ये बात सत्य है की समय के साथ हर भाषा का स्वरुप परिवर्तित होता है, किन्तु भाषा के प्रति प्रेम और सम्मान कम नहीं होना चाहिए. कुछ मेरे दक्षिण भारतीय मित्रों को हिंदी को राष्ट्र भाषा स्वीकार करने से इस बात से इनकार है क्योंकि वो उत्तर भारतियों की भाषा है. यह विचार कुछ हद तक  गलत नहीं है. और यही सोचकर मुझे लगता है की शायद उपर बैठे देश के शाशकों मैं राष्ट्र भाषा के प्रति इमानदारी नहीं थी नहीं तो आज ६२ वर्ष बाद भी हिंदी को सिर्फ उत्तर भारतीय भाषा तक ही सीमित क्यों रखा? अगर साफ़ नियत और राष्ट्र भाषा के प्रति सम्मान से कोशिश की होती तो आज की पीडी तक हिंदी राष्ट्र भाषा के रूप मैं गर्व करती. साथ मैं मैं ये भी पूछना चाहता हूँ  की आपने अंग्रेजी जो भी भारतीय भाषा भी नहीं थी उसको सहर्ष अपनाया किन्तु अपनी राष्ट भाषा के प्रति इतना वैर ?

हाँ ये बात भी सही है कि अंग्रेजी भाषा विश्व मैं सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है और तकनीकी, बहुरास्ट्रीय वित्तिकरण और कंपनियों कि वजह से उसका महत्व और आवश्यकता का अपना स्थान है किन्तु दिन प्रतिदिन व्यवहार मैं आम भाषा के रूप मैं अंग्रेजी को स्वीकारना और राष्ट्र भाषा का तिरस्कार करना अत्यंत निंदनीय है. ईश्वर कि कृपा से मुझे कुछ अन्य देशों मैं रहने और भ्रमण करने का अवसर मिला है, और मुझे यही लगा है कि ज्यादातर देश चाहे  व्यापार जगत मैं अंग्रेगी को अपना रहे हों, पर देश कि एकता और अपने अस्तित्व को विश्व पटल पर स्थापति करने के लिए सभी ने अपनी भाषा को सर्वोपरि सम्मान दिया है, फिर वो चाहे फ्रेंच हो या रसियन  हो, चीनी हो या जर्मन, सिंहली हो या जापानी, सोमाली हो या कजाक अपनी राष्ट्र भाषा पर सभी को गर्व है. वैसे आप विश्व भाषाओँ के बारे मैं इस लिंक मैं देख सकते हें  
http://en.wikipedia.org/wiki/List_of_languages_by_number_of_native_speakers
ऐसा क्यों है कि आप घर मैं अपने बच्चों से अंग्रेजी मैं बात करने मैं गर्व महसूस करते हें? हिंदी बोलने वाला या फिर अपनी क्षेत्रीय भाषा बोलने वाला बच्चा शायद अलग सा पड़ जाता है? और शायद यहीं पर हमारी अपनी जिम्मेदारी एक नागरिक कि तरह महसूस होनी चहिये कि बच्चों मैं अपनी राष्ट्र भाषा के प्रति सम्मान जगाएं. और तो और हमारे आजके बुद्धिजीवी वर्ग भी अपनी बात अंग्रेजी मैं व्यक्त करने मैं बात का वजन और महत्व समझते हें? कभी कभी बड़ा व्यंगात्मक लगता है कि हिंदी मैं साहित्य/काव्य/गीत  लिखने वाले लेखक/कवी अपने बच्चों से या फिर व्यवहार मैं अंग्रेजी भाषा का ही मात्र प्रयोग करने मैं गर्व महसूस करते हें. आप फ़िल्मी या फिर टीवी कलाकारों को देख लीजिये ( जिनसे आजके युवा काफी प्रभावित रहते हें ), पैसा हिंदी कि वजह से कमाएंगे, किन्तु व्यवहार मैं हिंदी बोलना उनकी शान के खिलाफ होगा और अगर उनका कोई मित्र हिंदी बोलेगा भी तो उसे तिरस्कार कि दृष्टि से देखा जायेगा. शुद्ध हिंदी  बोलने वाला तो आजकल मजाक का विषय बन गया है? काफी बार टीवी मैं ऐसे कार्यक्रम आते हें जो आम आदमी से जुड़े होते हें किन्तु कार्यक्रम का माध्यम अंग्रेगी होने कि वजह से वो बात सिर्फ तथाकथित बुद्धिजीवियों तक रह जाती है. 
मुझे बचपन मैं जयशकर प्रसाद जी कि ये कविता याद आती है "हम कौन थे क्या हो गए और क्या होंगे अभी".

Wednesday, August 18, 2010

With my son

Vartamaan Manav

Ye Hai Vishwas

Men Udaas Hun

Stithi tanavpoorna kintu niyantran men hai



Pushp ( Flower)

Rastra ke prati

Baalya Jeevan

Prabhu Bhakti

Tsunami

Chiri

Saturday, August 14, 2010

Vijay Lata Aniruddha Upreti

यह ब्लॉग मैंने अपने कुछ मित्रों के कहने पर बनाना शुरू किया है.
 वैसे तो अभी ऐसा कुछ है नहीं जो में ब्लॉग में लिख सकूँ, किन्तु फिरभी मैं यह ब्लॉग मैं अपनी कुछ रचनाओं को प्रकाशित करने के लिए लिख रहा हूँ.


धन्यवाद
 विजय शंकर उप्रेती