ये  काल  बीतता जाता
कुछ खट्टे कुछ मीठे पल
कुछ सीधे कुछ उलटे पथ
उन यादों को साथ समेटे
रुकता नहीं चलता जाता
ये काल  बीतता जाता
कल  भी कुछ ऐसा द्रिड था
अब भी यूँ ही कुछ  अडिग  है
कल निष्फल था अब निश्चय है
निश्छल  कर्म अपनाता  
ये काल  बीतता जाता
भटका राह  मैं बार अनेकों
गिरते पड़ते उस पार अनेकों
असफलता के द्वार अनेकों 
फिर उठकर राह बनाता
ये काल  बीतता जाता
हाथों की नन्हीं वो लकीर
प्रेरणा प्रदाती नित प्रतिदिन
संकल्प कर्म लिखता भविष्य
असफलता को  गले लगता 
ये काल  बीतता जाता
आगे की राह विकट है
सुनसान रात्रि का घट है
इस तेज धार के विरुद्ध बढूँ
प्रभु को शीष नवाता 
ये काल बीतता जाता
                                                                                विजय उप्रेती
 
 
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