Saturday, January 15, 2011

Ek ghatna

ये घटना कुछ ऐसी है जो शायद में कभी भी नहीं भूल सकता . हाँ उसे याद करके अपने इंसान होने पर गर्व करने का अहसास  जरूर होता है, वो भी अगर आपके एक छोटे से कर्त्तव्य से किसी जीव के प्राण कि रक्षा  हो सकती हो तो.

दिसम्बर की वो कड़ाके ठण्ड. मैं घर से ऐसे ही घूमने मोटर साइकिल में निकला था. देखा कि गली के एक कोने पे कुछ लोग घेरा बनाके खड़े थे. पास जाके देखा तो बड़ा अजीब सा दृश्य था. नवजात पांच छह कुत्ते के पिल्ले ठण्ड में एक दूसरे के ऊपर लेटे हुए थे. किसी तरह अपने आप को ठण्ड से बचा रहे थे. कुतिया वहां आसपास थी नहीं इसलिए वो छोटे छोटे पिल्ले अपनी माँ को ढूढ़ते दूध के लिए कुन कुन करते. उनकी अधखुली आँखें नन्हे से हाथ पैर मारते कभी इधर तो कभी उधर गिरते पड़ते.दृश्य काफी भावुक और दर्दनाक था. आसपास खड़े लोग इस दृश्य को देख कर दुःख तो मना रहे थे किन्तु उनके लिए कुछ करने में असहाय महसूस कर रहे थे . कुछ शायद ये सोचकर हिम्मत ना कर पाए कि हो सकता कुतिया वापस आ जाये . पर सच तो यह था कि इतने के लिए वो इंसान के नहीं कुत्ते के पिल्ले थे. आज के इस कठोर समय में वैसे भी आज इंसान के बच्चे को भी कोई नहीं पूछता, उनको कौन देखता, कौन उनके बारे में सोचता, बस दृश्य देखकर जरूर उस समय के लिए सभी का मन पसीज रहा था पर धेरे धीरे सब वहां से निकल पड़े.

खैर में भी औरों कि तरह वहां से यही  सोच निकल तो गया कर कि शायद उनकी माँ वहीँ कही गयी होगी, वापस आ जाएगी. पर वहां से निकलकर मेरे मन में ये विचार घूमते रहा कि क्या होगा अगर वो ना आ पायी? क्या ये नन्हें प्राणी यू ही ठण्ड की बलि चढ़ जायेंगे? क्या में कुछ नहीं कर सकता उनके लिए? उन नन्हें प्राणियों की  दीन दशा मुझे काफी चोट पहुंचा रही थी. कुछ समझ नहीं आ रहा था. यही सोचते सोचते अपने मित्र के पास पहुंचा. उन्हें इस बात कि जानकारी दी और उनका सुझाव मांगा. पता चला कि Blue Cross Society जानवरों, ख़ास कर कुत्तों की देखभाल के लिए कार्यरत है और वो जरूर इन्हें सहारा देंगे. ये जानकर  एक बात की थोड़ी  उम्मीद  तो जरूर हुई कि उनको कुछ सहारा मिल सकता है. पर बात ये थी कि ये सब हो कैसे? उन्हें वहां से निकालना और उठा के अपने कमरे में ला जाना, Blue Cross Socity का पता करना था और  फिर उन पिल्लों को उनको सुरक्षित सोंपना. और सबसे बड़ी बात थी कि ये सब जल्दी कुछ करना था.

मित्र के घर से निकलते हुए  काफी देर हो गयी थे. तकरीब रात के बारह बजे होंगे. बस वहां से निकलकर सबसे पहले उस जगह पहुंचा ये देखने के लिए कि वो पिल्ले अभी भी वहीँ हें या कुतिया उन्हें किसी सुरक्षित स्थान ले जा चुकी है. आश्चर्य कि बात थी वो तब भी ठण्ड में यु में कुड़ कुड़ कर रहे थे. कुतिया का कुछ अता पता नहीं था. अब तो काफी कुछ निश्चय सा हो गया था कि शायद वो कुतिया अब इस लोक में नहीं थी या आ नहीं पा रही थी. ठण्ड अब काफी बढ़ गयी थी. शायद यही कोई ५-६ डिग्री के आसपास का तापमान. लगा ये पिल्ले अगर ज्यादा समय ठण्ड में ऐसे ही रहे तो सुबह तक तो सभी मृत्यु को प्राप्त हो चुके होंगे. फिर कुछ सोचकर कमरे में गया और गत्ते का बड़ा सा डब्बा ले आया. उन पिल्लों को उठाकर डब्बे में रखा और मोटर साइकिल के आगे कि जगह में रखकर धीरे धीरे चलाकर अपने कमरे ले आया. कमरे में उन्हें कुछ कपड़ों से ढककर फिर किसी तरह चम्मच से दूध पिलाकर फिरसे डिब्बे में रख दिया.

रात तो जैसे उन पिल्लों की कुन कुन में कट रही थी. वो कभी डब्बे से बहार निकल जाते तो उन्हें फिरसे डब्बे में वापस डालना पड़ता और फिरसे ढकना पड़ता. शुरू में तो काफी परेशानी सी लगी, पर फिर उनसे जैसे दोस्ती सी हो गयी. बस फिर क्या था रात ऐसे ही उनसे बातें करते, उनकी उनसे खेल करते, उनकी सेवा करते कब निकल गयी कुछ पता ही नहीं चला. कुछ अलग सा ही अनुभव था. उस रात जीवन दर्शन का ज्ञान जो शायद बड़े बड़े ग्रंथों को पड़ने से ना होता, इस छोटी सी  घटना ने जीवन के सच्चे अनुभव को करीब से देखने का अवसर दिया. एक अलग सा अनुभव था जो शायद शब्दों में वर्णन करना मुश्किल हो रहा है. लगता था जैसे उस रात्री  के लिए मुझे उनकी माँ की भूमिका निभानी थी. जो कुछ समय पहले रस्ते के कोने में पड़े ठण्ड में अकड़े  जकड़े से अनजान दीन प्राणी थे, उनसे अपनत्व हो गया था.

खैर भोर होते ही अपने नित्य कर्म के बात फिर उन्हें धूप में बाहर रखा. फिर Blue Cross Society  के नंबर का पता किया और उनसे इस सन्दर्भ में बात कि. उनकी सहमति के बाद मैंने ऑटो रिक्शा किया और उन्हें Blue Cross ले गया. वहां पर अन्य कुत्तों कि सुरक्षा और देखभाल से ये तो निश्चय हो गया कि अब इनका आगे का जीवन यहाँ सुरक्षित रहेगा. उन्हें उन पिल्लों को देते हुए थोडा मन भारी  सा लग रहा था किन्तु ये भी ख़ुशी थी कि अब ये सुरक्षित रहेंगे. वैसे भी में अकेले किराये के घर में उन्हें पाल नही पाता. एक या दो होते तो में हिम्मत कर भी लेता, पर ६ कुत्तों की देखभाल? पर जो होता है अच्छे के लिए होता है.

में फिर उनके बारे में जानकारी लेता रहा. पता चला  वो बाकि अच्छे खासे हट्टे कट्टे तंदरुस्त हो गए थे पर उनमें से २ बेचारे बीमारी कि वजह से मृत्यु कि भेट चढ़ गए थे. करीब ८-१०  महीने पश्चात में फिरसे उनसे मिलने गया और ये देखकर अत्यंत ख़ुशी हुई कि  कि वो अब वो बड़े हो गए थे. खूब खेलते मस्ती करते कूदते फांदते. उनको बढ़ता देखकर मन को काफी प्रसन्नता हो रही थी. बाद में ये पता चला कि शायद उनमें से २ कुत्तो को तो किसी ने गोद ले भी लिया था. ये जानकार मन को काफी सुकून और ख़ुशी हुई.

आज इस घटना को करीब १२ वर्ष से उपर हो गए हें पर शायद वो घटना मुझे ऐसी लगती है मानो आज-कल की रही हो. उस घटना ने मुझे मानवता का ऐसा पाठ पढाया जो शायद में किताबी ज्ञान से अर्जित ना कर सका.

2 comments:

  1. :) u followed your heart sir ..cheers for that.. very few would have acted the way u did..

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  2. We all should learn from your deed. Action speaks louder than words and u implemented this by your efforts.
    very well described bijjuda....keep it up...

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