कल की बात है.....में सपरिवार एक भोजनालय में बैठा था.. यूं हि हम लोग आपस में बातें कर रहे थे. तभी एक अन्य परिवार वहाँ भोजन के लिए पहुंचा . यहाँ उन परिवार के बारे में बतना जरूरी है. नाम और स्थान के बारे में तो नही पर हाँ ये जरूर बतान चाह्ता हूँ कि उस परिवार में दो युवा दम्पति , उनका एक २-३ साल क बेटा, उनके माता पिता और साथ् में ८-९ वर्ष की नन्ही सी बच्ची. बच्ची के पहनावे वगैरह से लग रहा था कि शायद वो वहाँ नौकरानी की तरह काम करती है. खास तौर पर बच्चे कि देखबहाल के लिए. उनके बैठते हि सबसे पहले जो हमारे कान में शब्द पढे वो थे उस नन्ही बच्ची के लिए. "तुम्हें खाना नही मिलेगा और तुम बच्चे की देखभाल करो". सुनकर कुछ अजीब सा लगा.
हम अपना खाना शुरु कर चुके थे और वो बच्ची हमें खाते हुए बडी दीन दृष्टि से देखी जा रही थी. मन बडा खराब हो रहा था. एक बार लगा कि उसके लिए कुछ खाने को दे देन, पर क्या करें हम कुछ दे भी नही सकते थे. आँखिर वो उस परिवार के साथ् आयी थी. खैर ये तो सिर्फ शुरुआत थी. धीरे धीरे परिवार के लिए अलग अलग प्रकार के व्यंजन आने लागे. वो बच्ची कभी उनके बेटे की देखती तो कभी पीने का पानी लाती. और फिर उनके माता पिता ने भोजन की शुरुआत की. हमें लगा शायद वो हि कुछ कहेंगे अपने बच्चों से कि उस बच्ची को भी कुछ खाने को दें. पर ये क्या...वो सारा ध्यान अपने और अपने पोते को खिलाने में दे रहे थे. किसी को उस बच्ची की पर्वाह नही थी. वो नन्हा बच्चा जिसे शायद खाने की भूख भी नही थी...जबर्दस्ती दादा दादी उसके मुह में खाना ठूस रहे थे. क्या क्रूरता का दृश्य था. परिवार मध्यम वर्गी लग रहा था. उनकी इस हरकत को देखके मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था. एक बार तो मन हुआ की उनके पास जाके उनसे बात करुं..पर दूसरे के मामले में तांग ना अडाने के विचार ने रोक दिया.
खैर हमारे दुख का थोडा अंत हुआ जब उस बच्ची के लिए भी एक छोटी सी प्लेट में २-३ टुकड खाने के डाल दिए. और देखिए इनकी सभ्यता का एक और नजारा, उनकी माँ जिनसे मातृत्व की हमें ज्यादा अपेक्षा थी, ने अपनी जूथन उस बच्ची के प्लेट में डाल दी. वो बच्ची उसी में खुश थी शायद उसे इस सभी आदत सी हो गए थ. उनकी इस हरकत को देखाके मन बडा व्यतिथ हो रहा था . वो परिवार एक दूसरे के लिए काफी फिक्रमंद था . बेटा माता पिता से पूछ्ता खाने को....उनकी प्लेट में जबर्दस्ती खाना और डाल देता की कहीं वो खाना कम न खाएँ... और उनके माता पिता भी अपने बहु और बेटी और पोते पर अपना प्रेम लुटा रहे थे. पर उन सबके प्यार में वो बच्ची का बचपन कहीं पीचे छूट चुका लगता था.
खैर बेमन से खाना खाके हम लोग वहाँ से निकाल तो पढे. पर मन बडा हि दुखि था और यहि सोचकर कि काश वो इन्सान बन पाते, क्योंकी अपने बच्चे को तो जानवर भी प्यार करते हें....हम इन्सानो से कम से कम इतनी अपेक्षा तो कि हि जा सकती है? में वैसे तो कुछ कर नही सका...किन्तु इस लेखन के मध्यम से ये जरूर बताना चाह्ता हूँ कि किसी भी बच्चे/बच्ची को, जिनका पहला अधिकार बचपना है और दूसरा भोजन और शिक्षा है इन सबसे वन्चित ना होने दे....ये बच्चे भी प्यार और प्रेम के इतने ही अधिकारी हें जितने आपके. परिथिति विपरित होने कि वजह से वो गरिब परिवार में पैदा हुए इन् बच्चों में भी वोही भगवान बसते हें जो आपके बच्चों में. आप कुछ न भी कर पाएँ तो कम से कम उन्हें तिरस्कार कि दृष्टि से ना देखें, हो सके तो उन्हें भी प्यार के दो मीठे पल बात दें.
This is even a crime to have a child labour!
ReplyDeleteDon't know how humans behave so differently... X-(