Tuesday, May 24, 2011

Jab Hum bhi Chote Bachche The


जब हम भी छोटे बच्चे  थे 

अकल के कच्चे दिल से सच्चे
बकबक करते कभी न थकते 
 कुछ मोटे कुछ पतले दिखते
और सभी को  लगते  अच्छे 

लोट पोट मिट्टी मे सनते 
या रेतों के टीले चिनते 
कोई बहती नाक संभाले 
बगती कोई पेंट  संभाले  

पेड़ों की शाखों  को पकडे 
कभी झूलते कभी  झुलाते 
और कभी ऊँची डाली पे 
चड़कर मानो राजा बन जाते

कभी दूर से कभी पास से
बातें करते आसमान से 
जग्गू संजू बिज्जू मिल हम
कभी रूठते कभी मनाते 

जग्गू की थी बात निराली
बातों की उसमें चतुराई 
शब्दों के यूँ जाल फेंकता 
हम सबका  मन मोहित करता

गुल्ली डंडा चील झपट्टा 
ले ना जाए देके झटका
छुपन छुपाइ  शामत आई
आइस पाइस सबको भाई  

दे पत्थर हम बेर तोड़ते 
औंधे मुह गिर कभी लोटते 
चोट लगे तो डरते छुपते
कभी पीटते कभी पिटाते

उन गालिओ कोनों में फिरते 
जुगनूँ तितली बर्र पकड़ते 
नहीं सूझता खाना पीना
अविराम खेलते कभी न थकते

माचिस के डिब्बों का संग्रह 
कंचों के रंगों का संग्रह
टूटे टायर सरपट दौडाते
जीत गए तो फिर इतराते


जब हम भी छोटे बच्चे थे

2 comments:

  1. bahut umda sir .. bachpan ke din koi lauta de

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  2. बहुत अच्छा लिखते हो । लिखते रहो :)

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